Warning: include_once(/home/u115252715/domains/nirogvidya.com/public_html/wp-content/plugins/akismet-plugin/akismet.php): Failed to open stream: No such file or directory in /home/u115252715/domains/nirogvidya.com/public_html/wp-content/themes/litho/functions.php on line 2

Warning: include_once(): Failed opening '/home/u115252715/domains/nirogvidya.com/public_html/wp-content/plugins/akismet-plugin/akismet.php' for inclusion (include_path='.:/opt/alt/php82/usr/share/pear:/opt/alt/php82/usr/share/php:/usr/share/pear:/usr/share/php') in /home/u115252715/domains/nirogvidya.com/public_html/wp-content/themes/litho/functions.php on line 2
नि:संतानता – निरोग-विद्या

9027312647

सम्पर्क करे

सेवा निकेतन आश्रम

अरनियाँ, बुलंदशहर (उ. प्र)

contact@nirogvidya.com

E-mail भेजे

नि:संतानता sachinkmsharma March 1, 2020

संतान के बिना गृहस्थ जीवन का सुख अधूरा है। आधुनिक चिकित्सा शास्त्र की विशेष उन्नति के पश्चात भी अनेक लोग विवाह के कई कई वर्ष बाद भी संतान के लिए परेशान रहते है। अनेकों उपचारो के पश्चात भी संतान सुख प्राप्त नहीं होता, लाखो रुपये लुटा चुके होते है। आधुनिक चिकित्सा की सबसे बड़ी कमी यह है कि वह केवल शरीर को देखता है, वह कर्मफल के सिद्धान्त पर विश्वास नहीं करता, जिसके कारण इसका समग्रता से उपचार नहीं हो पाता। संतान के न होने का एक कारण शारीरिक दोष भी हो सकता है, जिसका उपचार औषधियो से संभव है। किन्तु केवल यही कारण नहीं होता है, प्रारब्ध अथवा कोई श्राप भी इसमे कारण होता है, जैसे कि सर्पश्राप, पितृश्राप आदि अथवा पूर्व का कोई फल अशुभ परिणाम देकर बाधा उत्पन्न करता है।जिस पर कि ध्यान न दिये जाने पर अनेक उपचारो के पश्चात भी सफलता प्राप्त नहीं होती है।

हमारे द्वारा ऐसे सैकड़ो दंपतियों को संतान लाभ प्राप्त हुआ है। इसके लिए हम सर्वप्रथम संतान-उत्पत्ति में उत्पन्न हो रही लौकिक और पारलौकिक समस्याओ का विश्लेषण जन्मपत्री के माध्यम से करते है। तदनुसार प्रायिश्चित आदि यथाआवश्यक समाधान के साथ साथ, पूर्णतः शास्त्रीय विधि से आयुर्वेदिक औषधीया दी जाती है। रेणुका,इंद्रजौ आदि बीस औषधियो का चूर्ण एवं बंगादि सात भस्मों के योग से यथोचित औषधि व्यक्ति के अनुरूप निर्मित की जाती है। यह योग, सभी प्रकार के पुरुषो के धातुसम्बन्धी रोगो, स्त्रियो के रज सम्बन्धी विकारो को दूर करता है। 

आयुर्वेद शास्त्र में इसके लिए कहा गया है – पुंसामपत्यजनको बंध्यानां गर्भदस्तथा।  

इसका सेवन करने वाला पुरुष नपुंसक होता हुआ भी पुत्र उत्पन्न करता है और स्त्री बांझ होती हुयी भी इसका सेवन करने से पुत्रवती होती है। अर्थात शरीर और प्रारब्ध दोनों पर दृष्टि रखते हुये दोनों के ही दोषो को दूर करने से निश्चित ही लाभ प्राप्त होगा। अधिक जानकारी के लिए सम्पर्क करे।