आयुर्वेद में, स्त्री संबंधी विकारों को योनिव्यापद के रूप में वर्णित किया गया है। विभिन्न स्त्री रोग जैसे अनार्तव, कष्टार्तव और अत्यधिक रक्तस्राव आदि मासिक धर्म संबंधी विकारों, बांझपन आदि के अंतर्निहित कारकों को समझकर सफलतापूर्वक उपचार किया जाता है।रजोदर्शन से ले कर रजोनिवृत्ति तक आयुर्वेद प्रत्येक स्त्री रोग के सफल प्रबंधन के लिए समाधान प्रदान करता है। गर्भावस्था से संबंधित बीमारियों के प्रबंधन के लिए आयुर्वेद में अच्छी तरह से योजनाबद्ध गर्भिणी परिचर्या वर्णित है। रजोनिवृत्ति सम्बंधित विकारों को भी हार्मोन के उपयोग के बिना लक्षणों को ठीक कर प्रबंधित किया जाता है। इस प्रकार, आयुर्वेद में वर्णित सरल उपचारों के विधि-सहित प्रबंधन से, स्त्री संबंधी रोगो का प्रभावी तरीके से निदान संभव है।
वातिक प्रकृति की रोगियों में मासिक धर्म कम अवधि का, अनियमित और बहुत कम रक्त प्रवाह के साथ होता है, इसमें ऐंठन, पीठ के निचले हिस्से में दर्द, कब्ज, पेट फूलना, अवसाद, चिंता, कम जीवन शक्ति, अनिद्रा, और अत्यधिक संवेदनशीलता जैसी अन्य बीमारियाँ भी होती हैं।
पैत्तिक प्रकृति की रोगियों में मासिक धर्म में रक्त का प्रवाह अधिक होता है तथा यह मध्यम अवधि का होता है। वे मुँहासे, चकत्ते, लाल आँखें, चिड़चिड़ापन, दस्त, बुखार या जलन, और चेहरे पर अधिक तेज जैसी स्वास्थ्य समस्याओं का सामना कर सकते हैं।
कफज प्रकृति की रोगियों में लंबे समय तक, निरंतर और मध्यम रक्त प्रवाह वाला मासिक धर्म होता है तथा मतली, सूजन(ज्यादातर निचले पैरों में), भारीपन और थकान जैसी समस्याएं होती हैं।
अकसर, महिलाओ में दो दोषों का संयोजन देखा जाता है।
बांझपन – प्रजनन प्रणाली के घटकों को देखकर बांझपन का प्रबंधन किया जाता है। आयुर्वेद में प्रत्येक व्यक्ति के शारीरिक प्रकारों पर ध्यान दिया जाता है, निषेचन की प्रक्रिया में भाग लेने वाले शरीर प्रणालियों को उत्तम अवस्था में लाया जाता है और इसलिए यह निषेचन के लिए एक उत्कृष्ट विकल्प के रूप में कार्य करता है। साथ ही इस रोग के कारण में निहित पूर्वपाप कृत दोषो का दैवव्यपाश्रय पद्यति से उपचार किया जाता है। जो कि इस रोग का प्रमुख कारण होता है। मूल कारण के प्रायिश्चित तथा औषधि सेवन के संयुक्त उपचार से सहज ही इस रोग का निदान होता है।
- समग्र दृष्टिकोण: आयुर्वेद शरीर और मन के बारे में समग्र दृष्टिकोण रखता है, शारीरिक, भावनात्मक और मानसिक स्वास्थ्य के अंतर्संबंध को पहचानता है
व्यक्तिगत उपचार: आयुर्वेद आपकी अनूठी प्रकृति (दोष संरचना) और विकृति (असंतुलन) के आधार पर व्यक्तिगत देखभाल पर जोर देता है। यह सुनिश्चित करता है कि उपचार योजनाएँ आपकी विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप हों और आपके व्यक्तिगत असंतुलन को संबोधित करें, जिससे अधिक प्रभावी और लक्षित परिणाम प्राप्त हों
प्राकृतिक उपचार: न्यूनतम दुष्प्रभावों के साथ सुरक्षित और प्रभावी हर्बल फॉर्मूलेशन का उपयोग करता है।
समग्र स्वास्थ्य पर ध्यान: आयुर्वेद रोकथाम पर जोर देता है, हार्मोनल संतुलन बनाए रखने पर मार्गदर्शन प्रदान करता है